अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को भारत का श्रम एवं रोजगार मंत्रालय यूं ही गुमराह करता रहेगा?

पूरे देश में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जहां मजदूरों और ठेका कर्मचारियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार और श्रम आयोग इन समस्याओं पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्या यह एजेंसियां सिर्फ खानापूर्ति के लिए बनाई गई हैं?
नई दिल्ली। भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, भारत ने इस वर्ष के अंत में दोहा, कतर में आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में सामाजिक विकास के लिए द्वितीय विश्व शिखर सम्मेलन के आयोजन को समर्थन दिया है। यह आयोजन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के तहत सामाजिक विकास के 2030 एजेंडा को सुदृढ़ बनाने के लिए किया जा रहा है। निश्चित रूप से भारत सरकार का यह समर्थन आवश्यक है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या केवल समर्थन से ही इस एजेंडा को पूरा किया जा सकता है?
संयुक्त राष्ट्र संघ के सभ्य कार्य एजेंडा पर चर्चा और बढ़ता विवाद
बामसेफ के राष्ट्रीय अधिवेशन, जो दिसंबर 2024 में नागपुर में आयोजित हुआ था, में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई थी। इसके बाद पूरे देश में यह सवाल उठने लगा कि भारत में संयुक्त राष्ट्र संघ के सभ्य कार्य एजेंडा और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन क्यों किया जा रहा है?
श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अनुसार, भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने 10 मार्च से 20 मार्च तक स्विट्जरलैंड के जिनेवा में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की 353वीं शासी निकाय बैठक में भाग लिया। इस बैठक में जीवन निर्वाह मजदूरी, गिग वर्कर कल्याण, मूल्य श्रंखलाओं में सभ्य कार्य, सामाजिक न्याय, सामाजिक सुरक्षा कवरेज और प्रवासी श्रमिकों के समर्थन पर चर्चा हुई।
मंत्रालय के दावों पर उठते सवाल
भारत सरकार का दावा है कि उसने अपने सामाजिक सुरक्षा कवरेज को 48.8 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है, जिससे वैश्विक स्तर पर औसत सामाजिक सुरक्षा कवरेज में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ईपीएफओ, ईएसआईसी, ई-श्रम पोर्टल, पीएम जन आरोग्य योजना और लक्षित पीडीएस जैसी योजनाओं के जरिए करोड़ों नागरिकों को लाभ मिल रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इन योजनाओं का लाभ सभी पात्र नागरिकों तक सही से पहुंच रहा है?
बिचौलियों का खेल और सरकार की चुप्पी
श्रम विभाग की कई योजनाओं का एक बड़ा हिस्सा बिचौलियों की जेब में चला जाता है। यह बिचौलिये कौन हैं और इन्हें संरक्षण कौन देता है? सत्ताधारी दलों के प्रभावशाली लोग अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने के लिए इन्हें मदद देते हैं। कार्यालयों में सेटिंग कर अपात्र लोगों को भी इन योजनाओं का लाभ दिया जाता है, जिससे असली हकदार वंचित रह जाते हैं।
नए श्रम कानूनों से मजदूरों के लिए बढ़ी मुश्किलें
सरकार ने पहले से लागू 44 श्रम कानूनों को समाप्त कर केवल 4 श्रम संहिताएं लागू की हैं। इन संहिताओं से ट्रेड यूनियन बनाना कठिन हो गया है, असंगठित क्षेत्र को बढ़ावा मिला है और मजदूरों के अधिकारों को कमजोर कर दिया गया है।
श्रमिकों के साथ भेदभाव और प्रवासी श्रमिकों की स्थिति
भारत सरकार ने प्रवासी श्रमिकों के लिए वैश्विक सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है। लेकिन जब भारत में ही मजदूरों के साथ भेदभाव होता है, तब इसका संज्ञान कौन लेगा? 2024 में उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा के दौरान मुस्लिम श्रमिकों को हटाने के सरकारी आदेश जारी किए गए थे। केंद्र सरकार ने इस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। क्या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे पर भारत से सवाल नहीं किए जाएंगे?
हरियाणा के सफाई कर्मचारियों का संघर्ष
हरियाणा में सोनीपत नगर निगम के ठेका सफाई कर्मचारी कई महीनों से वेतन न मिलने के कारण आंदोलनरत हैं। कुछ सफाई कर्मियों का वेतन 2020 से बकाया है। सरकारें ठेका कर्मचारियों की समस्याओं को हल करने में विफल रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के कार्यकाल में सफाई कर्मचारियों को पे-रोल पर रखने का निर्णय लिया गया था, लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं हुआ।
हरियाणा में शिक्षा विभाग के बहुउद्देशीय कार्यकर्ताओं की अनदेखी
हरियाणा के शिक्षा विभाग में कार्यरत बहुउद्देशीय कार्यकर्ता (MPW) पिछले एक साल से वेतन से वंचित हैं। ये कर्मचारी पानीपत, कैथल और झज्जर में काम कर रहे हैं और बोर्ड परीक्षाओं समेत अन्य सरकारी कार्यों में योगदान दे रहे हैं। लेकिन सरकार उनकी मेहनत का भुगतान तक नहीं कर रही।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सभ्य कार्य एजेंडा का खुला उल्लंघन
पूरे देश में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं, जहां मजदूरों और ठेका कर्मचारियों के अधिकारों का हनन हो रहा है। सरकार और श्रम आयोग इन समस्याओं पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्या यह एजेंसियां सिर्फ खानापूर्ति के लिए बनाई गई हैं?
निष्कर्ष
मजदूरों के हकों की लड़ाई में सरकारों की गंभीरता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। जब तक निचले स्तर के कर्मचारियों के साथ न्याय नहीं होगा, तब तक किसी भी वैश्विक श्रम सुधार एजेंडा का समर्थन करना महज औपचारिकता ही बना रहेगा। अब सवाल यह है कि क्या सरकारें इन मुद्दों पर वास्तविक समाधान निकालने के लिए कदम उठाएंगी या फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर केवल वादे और समर्थन का दिखावा ही करती रहेंगी?
(सुरेश द्रविड़, सदस्य NCCMBO एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बामसेफ)
(दिनांक: 18 मार्च 2025)